किसान दुर्दशा
किसान दुर्दशा
खलिहानों में पड़ा हुआ जो एक बेबस इंसान है।
धरती पुत्र कहाता है यह भारत का किसान है।।
रहता है बदहाल हमेशा क़िस्मत को हाय रोता है।
सबका पेट ये भरने वाला ख़ुद भूखा ही सोता है।।
कभी झेलता मार बाढ़ की कभी खेत सूखा मरता।
कर्जे सर पर चढ़ जाते हैं और ख़ुदकुशी है करता।।
देख दशा फसलों की अपने कूह कूह कर मरता है।
भीगी आंखों से खारे पानी का झरना झरता है।।
इस किसान के दम पर ही हर मुंह निवाला खाता है।
लेकिन इसके हिस्से में बस खाली चूल्हा आता है।।
मिट्टी में ही मिल जाएगा मिट्टी में जीने वाला।
लेकिन इसका यहां नहीं कोई चाक जिगर सीने वाला।।
सबने इसका साथ है छोड़ा क्या मानव और क्या भगवान।
भाग्य भरोसे ही जीता है धरती मां की ये संतान।।