किस दुनिया में रहती हो तुम??
किस दुनिया में रहती हो तुम??
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वह तुम ही थी,
जिसने प्रसव पीड़ा को सहा,
और एक जीवन को जन्म दिया,
वो तुम ही थी,
जिसने मां बनने के बाद,
अपने बेडौल होते शरीर को नहीं देखा,
वो तुम ही थी,
बच्चे सुकून से सो सके, इसीलिए
सालो रात में ठीक से सोई ही नहीं,
वो तुम ही थी,
बच्चे आसमान को छू सके,
खुद के पंख काट दिये,
वो भी तुम ही थी,
जिसने अपने बच्चों को,
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
और खुद
वो भी तुम ही थी,
जिसने अपने बच्चों को,
कपड़े पहनने का सलीका सिखाया,
खुद ढंग से ओढना पहनना भूलती गई,
वो भी तुम ही थी,
जिसने अपने बच्चों को,
क, ख, ग से शुरू कराया,
और किताब पढना सिखाया,
खुद अखबार भी पढना भूल गई ,
वो तुम ही थी,
जिसने अपने बच्चों को,
हर रंग पहचानना सिखाया,
खुद अपने जीवन के हर रंग को भूलती गई,
वह भी तुम ही थी,
जो अपने बच्चोंककी तरक्की के लिए,
खुद अपनी तरक्की को भूल गई ,
वह भी तुम ही थी,
जो बच्चों के मनोरंजनकी खातिर,
खुद टी. वी देखना भूल गई,
समय बदला,
तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे ही दिये,
पंख से उड़ने लगे,
और तुम हर बात पर,
हर समय, गलत ही होती चली गई,
कैसे कपड़े पहनती हो,
ढंग के कपड़े क्यों नहीं खरीद पाती तुम,
कहां नौकरी करती हो,
कोई ढंग की नौकरी नहीं कर पा रही थी तुम,
किस दुनिया में रहती है,
ना तो किसी नये हीरो का नाम पता,
ना ही किसी नई पिक्चर का ही नाम,
दुनिया में क्या हो रहा, कुछ भी नहीं जानती तुम,
हद है, किस दुनिया में रहती हो तुम,
ना तो तुमको फैशन का कोई ज्ञान,
मेकअप की दुनिया से भी तुम अनजान,
पता नहीं कौन सी सड़ी सी,
दुनिया में रहती हो तुम
अपने बच्चों के ताने सुन
सोचती हूं,
कब यह बच्चे,
मेरी सोच से भी बड़े हो गए हैं,
पता ही नहीं चला,
जिनको उंगली पकड़ चलना सिखाया था,
वह आज उड़ना सीख गए हैं,
कल तक जिन्हें सही और गलत,
का अन्तर मै बताती थी,
आज उनके लिए अक्सर मै ही,
कैसे गलत होने लगी ?
जिन्हें रंग की पहचान सिखाई,
आज मेरी पसन्द का हर रंग,
क्यो बेकार सा होने लग गया ?
आईने में देख,
खुद से ही पूछती हूं,
आखिर कौन सी दुनिया में रहती हो तुम ?