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Suresh Koundal

Tragedy

4.8  

Suresh Koundal

Tragedy

किन्नर की व्यथा "हाँ मैं किन्नर हूँ "

किन्नर की व्यथा "हाँ मैं किन्नर हूँ "

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हाँ मैं किन्नर हूँ पर, इसमें मेरा क्या दोष ?

मैंने भी औरों की भांति, मां के गर्भ से जन्म लिया,

क्या बदा है फिर भी मैंने औरों सा ना वर्ण लिया।

जाने क्यों प्रताड़ित हुआ, होते हुए निर्दोष।

हाँ मैं किन्नर हूँ पर, इसमें मेरा क्या दोष ?


न मैं नारी, न तो नर हूँ, 'किं- नर' की लगाई ईश्वर ने छाप,

जन्म लेते ही फेंक दिया अपनो ने, न किया कोई पश्चाताप,

क्या मैं कोई पाप हूँ या हूँ कोई अभिशाप ?

फिर ये क्यों घृणा, तिरस्कार, क्यों मुझे है आत्म संताप ?

लोक लाज के डर से त्यागा मुझको, मेरे मन में है आक्रोश।

हाँ मैं किन्नर हूँ पर, इसमें मेरा क्या दोष ?


हर कोई मेरा व्यंग्य बनाता,

कोई हिजड़ा, कोई ख़ुसरा कह जाता,

ज़िल्लत झेलता, नफरत सहता,

फिर भी लोगों के घर खुशी मनाता, 

ताली पीटता झूमता गाता ।

ताने, गाली सुनकर भी, औरों को दुआएं दे आता ।।

फिर क्यों नही अपनाते मुझको, 

क्यों नही गले लगाते मुझको,

क्यों करते हो तुम संकोच,

हाँ मैं किन्नर हूँ पर, इसमें मेरा क्या दोष ?


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