कईसन हो बबुआ
कईसन हो बबुआ
गाँव की मिट्टी की ख़ुशबू, रूह में बसी है।
तोड़ी थी जो डाल से मेहंदी, हथेली पे रची है।
यूँही जब कभी कोई नम्बर घुमा लेते थे।
बड़े-बुज़ुर्गों का आशीर्वाद पा लेते थे।
अब खौफ़-व-दहशत के साये से डर गए।
हर सुबह लगता है ज़िंदा है या मर गए।
लाठी की ठक-ठक, फिर ज़ोर से चिल्लाना।
क्यों दूर होने लगा है, अब वो ज़माना।
किस गुनाह की सज़ा मिली और कितना पाएँगे ?
"कईसन हो बबुआ" कहने वाले क्या लौट कर आएँगे ?
"कईसन हो बबुआ" कहने वाले क्या लौट कर आएँगे ?