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Kusum Joshi

Abstract

4.5  

Kusum Joshi

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कि लोग तेरा घर बनाते हैं

कि लोग तेरा घर बनाते हैं

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राम तूने देखा क्या कि,

लोग तेरा घर बनाते हैं,

जग का मालिक तू ही भगवन,

ये तेरा दर बनाते हैं,


ये ही तो लेकिन कहते हैं,

तू पालनहार हमारा है,

जो पालनकर्ता है सबका,

ये उसका घर बनाते हैं,


तेरे लिए आपस में लड़ते हैं,

मारते ख़ुद भी मरते हैं,

ताज रहे साड़ी मर्यादा,

मगर तुझे सज़दा करते हैं,


कि मर्यादा पुरुषोत्तम कहकर,

ये तुझपर दम्भ भरते हैं,

महानता ये भी है इनकी,

कि पत्थर से प्रेम करते हैं,


मर रही इंसानियत हर दिन,

कोई अफ़सोस ना इनको,

लुट रही ममताएं निश दिन,

नहीं कोई रोष पर इनको,


उजड़ते घर कितने हर दिन,

नहीं ये आसरा देते हैं,

तेरे तो भक्त हैं लेकिन,

ये तेरा घर बनाते हैं,


तेरे ही नाम पर भगवन,

बाँटते दुनिया को तेरी,

कि तुझ पर अधिकार कुछ का है,

इसी को धर्म बताते हैं,


सुना था कण कण में भगवन,

सदा ही शामिल होता है,

तुझे एक छोटे से घर में,

मगर ये कैसे बसाते हैं,


विश्व का रूप जिसमें है ,

मगर आकार ना कोई,

उस निराकार ब्रह्म का,

ये कैसे घर बनाते हैं,


कि तुझको बाँध अयोध्या में,

ये जग में पाप करें खुलकर,

तेरे दर पे तब पुण्यात्मा,

बन रहे पाप को धुलकर,


प्रभु तुमसे मैंने सीखा,

कि मानव रूप है तेरा,

रूप तेरा भूखा रोता है,

ये तुझको भोग लगाते हैं,


तेरे लिए वस्त्र लाते हैं,

कि पंखा ख़ूब झराते हैं ,

जो मांग ले भिक्षा कोई बालक,

उसे दुत्कार जाते हैं,


तेरा तो रूप सेवा में,

तेरा है वास सेवा में,

क्या अनभिज्ञ ये इससे,

कहाँ तेरा घर बनाते हैं।।



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