ख़याल
ख़याल
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कल चौदहवीं की रात बड़ी उदास थी
चाँदनी अपने चाँद के न पास थी
मैं संगीनों के साये में सोचा किया
तुम हरदम मेरे अहसास में थी
इक तरफ गोलियों की आवाज़ थी
इक तरफ मेरे सपनों की परवाज़ थी
तुम ख़्यालों में थी बन दुल्हन मेरी
हाँ सुनी तेरी पायल की आवाज़ थी
हम बयाबाँ में भटका किये साथ में
और मेरा हाथ था तेरे हाथ में
रात रानी महकती रही रात भर
मैं तेरे साथ थी तुम मेरे साथ में
मैंने घूँघट उठाया तुम शर्मा गयी
मैंने गेसू सँवारे तुम धबरा गयी
तुमने पलकें झुका ली मुझे देखकर
फिर झुकाकर उठाया ग़जब ढा गयी