खवाबों की रानी भाग 3
खवाबों की रानी भाग 3
कड़ी मशक्कत से निकला हूँ, प्यार का इजहार करने
क्या पता इंतजार कर रही होगी, वो इनकार करने।
डरता हूँ थोड़ा जख्मी दिल से, क्या पता तैयार
खड़ी हो तरकश में तीर लिये दिल के उस पार करने।
उम्मीदें तो बहुत थी दिल को, इस इश्क के जश्न्न से
बस वो समझ बैठी है कि है मोह्ब्बत हमें जिस्म से।
क्या दिलासा दूँ कम्बख्त इस दिल को कि वो तो
चिल्ला उठी थी बस मेरी खामोशी को नाकार करने।
कहने को तो दिल में इश्क,आज भी उल्फत करता है
क्या पता इस कम्बख्त को, वो दिल नफरत करता है।
एक बार आगाज करने दे मोहब्बत के एक लफ्ज से
तैयार खड़ा हूँ खामोशी को लफ्जों से बेकार करने।
रहम कर ऐ दिल थोड़ा इश्क में तेरा भी क्या हाल होगा
जब भटकने लगे तो अहसास हुआ, बिछा कोई जाल होगा।
न फसनें वाले थे हम हुस्न की वादीयों में बस जमाना
तैयार खड़ा था जीत के मैदान में हार से हाहाकार करने।

