खुशियों की तलाश में : एक ग़ज़ल
खुशियों की तलाश में : एक ग़ज़ल
खुशियों की तलाश में : एक ग़ज़ल
खुशियों की तलाश में हमने भर लिए गम दामन में
हंसी भी सिसक रही है अधरों के सूने आंगन में ।
जब से तेरा आंचल फिसला है मेरे हाथों से
जल रहा है दिल मेरा इश्क के बरसते सावन में ।
तू थी तो वक्त की कद्र न थी, अब वक्त है तू नहीं
सच की तलाश कर रहा हूं झूठ के इन पहाड़न में ।
ख्वाबों के पीछे भटक रहे, हकीकत को ठुकराया
जमाने के सितम झांक रहे मन के काले दागन में ।
हर कदम पर छलनी हुईं उम्मीदों की नाजुक डोरियां
हर रोज बढ़ जाती है टीस की थोड़ी मात्रा घावन में ।
सुकून की एक बूंद को तरसता है दिल होके बेकरार
मिली सिर्फ आंसुओं की बरसात झूठे प्रेम की छाँवन में ।
तेरे बिना हर सांस अधूरी, हर धड़कन बेकल सी है
सारी उम्र गुजर गई , यही बात मन को समझावन में ।
अब तो बस एक तमन्ना बाकी है, दिल के कोने में "श्री हरि"
नजरों से छू ले जो तू, तो लौट आए बसंत मन के कानन में ।
श्री हरि
26.7.2025

