खुशहाली की आशा
खुशहाली की आशा
वह दिन कब आएगा ?
जब सामने जो दिख रहा
गगनचुम्बी ऊँची अट्टालिका के
नीचे, पुआल की छज्जा
पुआल की झोपडी में
सोहराय महीना की
जाड़ा में।
जब माँ की गोद से
उतारकर ठंडी हरे
घास पर
गला फाड़कर रोता है
छोटा बच्चा।
फिर भी अट्टालिकाओं में
रहनेवालों का नींद
टूटता नहीं है।
वही बच्चा ही
बड़ा और युवा होकर
मन में स्वप्न देखता है
टूटा छप्पर
मिट्टी का घर को बनाएगा
ऊंचा अट्टालिका।
वह दिन कब आएगा ?
जब सोहराय पर्व की
आनंद
पांच दिन और पांच रात
के लिए नहीं
पूरे साल भर के लिए होगा।
वह दिन कब आएगा ?
जब समाज की
सभी बच्चे बड़ा और युवा होकर
समाज में
खुशहाली और शांति का
साकवा बजायेगा।