ना पसंदी का स्वाद
ना पसंदी का स्वाद
बारिश का मौसम तुम्हें याद तो होगा
कि कैसे छत्त पर तुम सूखे कपड़े
उतारने के लिए भागते थे
कहीं गीले हो गए तो
तुम्हें मेरी बातें सुननी पड़ेगी
वापिस आकर तुम कहा करते थे
अब गर्मा- गर्म चाय और पकौड़े हो जाए
पर मैं कई बार पकौड़े न बनाकर
बेसन का पूड़ा बना दिया करती थी
तुम उसे देख कर ऐसे मुँह बनाया करते थे
जैसे दवाई का कोई कड़वा घूंट तुम्हें पीने को कह रहा हो
या फिर ज़हर खाने को कह रहा हो
मुझे तुम्हें चिढ़ाने का बहुत कम मौका मिलता था
यह बात तुम भी जानते थे
कि मैंने तुम्हारे मन की क्यूँ नहीं की
भले ही तुम्हें बारिश पसंद ना थी
लेकिन तुम पकौड़े खाने के लिए
बारिश का बहाना ज्यादा ढूंढ़ते थे शायद !