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Rajdip dineshbhai

Romance

4  

Rajdip dineshbhai

Romance

खुश किस्मत है वो

खुश किस्मत है वो

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खुश किस्मत हैं वो कपड़े तेरे 

जो तेरे जिस्म को छूते हैं

खुश किस्मत हैं वो जुल्फे तेरी जिसे तुम थोड़ी थोड़ी देर बाद कान के ऊपर दबा देती हो 

खुश किस्मत है वो माथे पर लगने वाली बिंदी 

खुश किस्मत है वो आईना जिसे तुम गौर से खुदको देखती हो 

खुश किस्मत है वो लाली जिसे दोनों होठों पर लगाकर , लाली को चूमती हो 

पर जो खुशकिस्मत नहीं वो है नाखून 

जो बढ़ जाने पर तुम काट देती हो,


खुश किस्मत है वो ख्वाब जिसे देखने के लिए देर से उठती हो 

खुश किस्मत है वो परिंदे जिसे तुम पिंजरे में भी रखकर दाना भी डालती हो 

खुश किस्मत है वो किताब जिस पर हाथ फेरती हो और बहोत कुछ उल्टा- फुल्टा लिखती जाती हो 

पर जो खुश किस्मत नहीं वो है कलम जो खत्म होने पर तुम फेंक देती हो 


खुश किस्मत है वो पटाखे जिसे तुम जलाकर खुशी खुशी में नाचती हो 

खुश किस्मत है वो रंग जिससे तुम जिस्म का रंग बदलती हो

खुश किस्मत है वो पतंग जिसे छुकर कहती हो यही हवाओ में स्थित रहेगा 

पर खुश किस्मत वो धागा नहीं जो तुम्हें तुम्हारे अच्छे पतंग को कटा देता है और फिर तुम खुदको मायूस करती हो


खुश किस्मत है वो सुबह सुबह की हवाए जो तेरे जिस्म को छूकर जाती है 

खुश किस्मत है वो तेरे घर के जिसे तुम अपने से भी ज्यादा चाहती हो 

खुश किस्मत मैं नहीं क्योंकि तुम मुझे बंदा भी नहीं मानती हो


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