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V. Aaradhyaa

Abstract Drama

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V. Aaradhyaa

Abstract Drama

खोलिए ना सांकलें हृदय की

खोलिए ना सांकलें हृदय की

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ना जाने कब तो सारे रिश्ते रूठ गए,

माला के बिंधे मोती जैसे यूँ टूट गए !

लोभ, मोह, कृपणता को अब छोड़िए,

स्वार्थ के आड़े तिरछे मोटे परदे हटाइये।


आज भाई-भाई से हुए बहुत दूर,

दौलत और शोहरत के नशे में चूर!

अपनों के प्रेम को ना कभी तजिए,

हृदय की सांकलें खोलकर तो देखिए!


अपनों के साथ समय अर्पण करो,

अपने कलुषित मन को दर्पण करो!

मन में कोई गाँठ हो तो उसे तोड़िये,

अंतर्मन की बात खुलकर बतलाइए !


मन के चंचलता समस्त भाव बुनो,

अपनी पसंद के कुछ रंग भी चुनो !

मन की समग्रता के मधुर भाव सुनिए ,

प्रेम, सेवा, सौहार्द से, रिश्तों को निभाइये।



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