कहने को
कहने को
तुझमे मुझको दिखता रब
लड़की है तू कहने को
मुझको तू लगती भगवान का रूप
इंसां है तू कहने को
मेरे लिए तू पूरा गुलज़ार
एक कली तू कहने को
तेरा हो गया हूँ कबसे
औरों का तो बस कहने को
ग़ज़लें मेरी तो तेरे लिए
औरों के लिए तो कहने को
तेरे लब़ों से पीता मय़
ज़ाहिद तो हूँ कहने को
इच्छा मेरी तू ही हरदम
बांकि त बस कहने को
साँसें-धड़कनें मेरी तो तेरी
मेरी तो वो कहने को
नाज़ों से तेरे हूँ घायल
ठीक तो हूँ कहने को
सातों जनम मैं हूँ तेरा
एक जनम का कहने को
एक दुनिया में तू और मैं
दो तो है बस कहने को
तेरी कुर्बतों का हूँ पागल
वस् का तो बस कहने को
तेरे सामने ही हूँ शैतान
अच्छा तो हूँ कहने को
तेरे लिए रहता बेसबर
सब्र मुझमे बस कहने को
करता हूँ इक तेरी पूजा
काफ़िर हूँ बस कहने को
मेरे लिए तू ही सब कुछ
दुनिया तो है कहने को
एक तेरा ही ध्यान मुझे
अपना तो बस कहने को
तू ही मेरा है ख़ुदा
शिव-विष्णु तो कहने को!