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MITHILESH NAG

Classics

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MITHILESH NAG

Classics

खिले मौसम बसन्त बहार का

खिले मौसम बसन्त बहार का

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बसन्त के इस दिन में सो जाऊँ ये हो गया

 खिले फूलो की महक में खो जाऊँ ये हो गया 

खिले मौसम बसन्त बहार का ।।


बचपन की दौड़ में भागे भागे हम दूर गए

पीछे छूट गयी पुरानी टहनी हम दूर हुए 

खिले मौसम बसन्त बहार का ।।


चाँदनी रात की चमक से चमक गए 

पतियों की अंगड़ाई से हम झूम गए

खिले मौसम बसन्त बहार का ।।


गुनगुनाते हुए ये भौरे पूछ गए हम से

कब तक मिले शहद हम से पूछ गए 

खिले मौसम बसन्त बाहर का ।।


याद आये दादी की हाथों के सरसों के साग

पीते लस्सी मुँह मिठे हो गए झाग से

खिले मौसम बसन्त बाहर का ।।



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