खिल रहे हैं हम दोनों
खिल रहे हैं हम दोनों
जैसे काँटों में पलकर गुलाब खिलते हैं ,
जैसे कीचड़ में कमल खिल आते हैं ,
ठीक वैसे ही खिल रहें हैं हमदोनों ।
अपनी सौरभ से दुनिया को सराबोर करने,
प्रेम की सही परिभाषा को पुन: स्थापित हेतु ही तो हमारा जन्म हुआ है।
हमें मसलने की हर संभव कोशिश कर रहें हैं कुछ लोग,
मगर हम इतने नाजुक नहीं कि हमें कोई दबा सके!
अपनी सत्कर्मों की सुन्दरता और महक से बगिया को स्वर्ग बनाने हेतु ही तो हम आये हैं यहाँ ।
धूप, पानी ,पत्थर सब सहते - सहते ही तो हम आये हैं यहाँ,
जैसे काँटों में पलकर गुलाब खिलता है ठीक वैसे ही खिल रहे हैं हमदोनों ।
काँटों के बीच पलकर संग- संग खिलनेवालों के लिए प्रेरणा हैं हमदोनों ।
जिंदगी में एक- दूसरे की पहली और आखिरी उम्मीद हैं हमदोनों।।