कहीं किसी रोज
कहीं किसी रोज
कहीं किसी रोज ,कभी न कभी
मेरे उम्मीदों के आंगन में
हसरतों के लाल हरे पीले फूल खिल उठेंगे
बदल जाएगी जरूर
दुनिया मेरी जो उलफत की पट्टी
आंखों में बांधे कश्मकश में कैद करती रखती थी
जरूर तुम भी साथ देना मुझे
सारे बेरुखियों को भुला कर
एक बार मुस्करा देना मेरी ए जीत की जश्न में
याद आते हैं अपने जो आजकल
चुप रहने की बहाना ढूंढ लिया करते हैं
एक ख्वाहिश है दुआओं का असर
हम पे भी हो , खुशियों की हरियाली
हमारी नसीब कि क्यारियों भी लहराएं
आपको तो पत्ता है पत्तों में ओस
आखों में आंसू मुझे कमजोर कर देती है
अपनों को अपनाने में कैसा झिझक
बेइंतहां प्यार की बारिश हम भी कर देंगे
यकीन की छांव किसे नहीं भाता
अपनों के एहमियत गर हम समझ गए हैं
तो तुम भी दो कदम हमारे करीब आ जाओ ।।