जीवन एक मृगतृष्णा
जीवन एक मृगतृष्णा


जीवन की हर मोड़ पर
पल भर कि खुशी और दो पल कि दुःख
यकीन से परे हैं हर दास्तान
नैनों में भरे आशाओं की लहर
बह जाए पल भर में
बनके आसुओं की धार कर दें अधीर।
ए दिल किसे करे और
किसे न करें यक़ीन
मृगतृष्णा कि अाघोस में
हम सब डूबते जा रहे हैं
जहां से उभरना दिन व दिन हो नामुमकिन।
आंखों कि सरहद तक
हमने देखी जो रात और दिन
बदलते मौसम कि मनमानियां
कहिं ऐ तो मृगतृष्णा की
पल में ओझल पल में अटल
प्रतिबिंब तो नहीं।