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Tarvinder Kaur

Drama Fantasy

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Tarvinder Kaur

Drama Fantasy

खीचें जाती हैं हमारी रूह को

खीचें जाती हैं हमारी रूह को

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खीचें जाती हैं हमारी रूह को उनकी नज़रें,

बच बच के चल इश्क़ ए समंदर से ज़रा

गहरे भंवर हैं इस दिल के समंदर मे,

घटा घनघोर बरसी पर आग अब भी सुलगती है ज़रा

लहू की चादर ओढ़े बैठी है वहशत मेरे आँगन मे,

हवाएं कुछ ऐसी चलीं मेरी चाहत को न उरूज़ मिला,

न शफ़क़ मिली ज़रा

कूचाओ बाजार मे ढूंढा फिरते हैं उम्मीद,

महशर हैं ख्वाइशों का खौफ अब ज़रा

कतरा कतरा बहती जाती है हयात कफ़स से,

मरकज़ और मकसद को एक कर दो ज़रा



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