ख़्वाब
ख़्वाब
मैंने,
न बचपन की कोमलता को देखा,
न.. बौराए यौवन को छुआ,
भ्रमरों को भी न चूमते देखा,
न..फूलों में तुझे सिमटते देखा।
शायद, गजरों में तुम सँवरते हो,
कभी पायलों में झनकते हो,
सच में...तुम बहुत सुंदर हो,
आकर्षक और मोहक हो।
सबके दिलों को भाती हो,
नई कहानी नित्य गुनगुनाती हो ,
यद्दपि, मैं हूँ...नेत्रहीन,
फिर भी, हूँ बहुत शौक़ीन।
तेरी धड़कनों को सुनती हूँ,
सबसे करीब तुझे रखती हूँ,
सब अदाओं पे मरती हूँ,
बस, उजाले के लिए...
ही तरसती हूँ।।
