ख़ुशी अपने भीतर है
ख़ुशी अपने भीतर है
दूर क्यों तलाश उसकी, जो बिलकुल पास है,
ख़ुशी तेरे पास खड़ी है, फिर भी तू निराश है ।
भविष्य की चिंता और, वर्तमान की चाहतों में,
पल पल की ख़ुशी, लुट गई और लुट रही है ।
अपने भीतर झाँक, मिलना कितना सरल है,
अपनी नासमझी से, बना रहा इसे जटिल है ।
कभी महक, कभी ध्वनि, बनकर गुजरती है,
कभी स्पर्श बनके, तन मन विभोर करती है ।
कांपती सर्दी में धूप का, टुकड़ा बन जाती है,
तपती गर्मी में बादलों से, फुहारें बरसाती है ।
कभी चिड़ियों के, कलरव में सुनाई देती है,
कभी बच्चे की, किलकारी में नज़र आती है ।
कभी चंद पलों की, गहरी नींद बन जाती है,
ख़ुशी एहसास है, जो रूप बदलकर आती है ।
कभी रास्ते पर, चलते-चलते मिल जाती है,
मगर हर पल हमारे, आसपास मंडराती है ।
ख़ुशी को हर पल, पहचानना आना चाहिये,
बस ख़ुशी से मुलाकात, करना आना चाहिये ।