ख़ुशबू
ख़ुशबू
आहें दिल से मेरे निकलती रही !
ग़म में जिंदगी यूं बिखरती रही
ऐसी बेवफ़ाई की छोड़ी है बू
उसकी बू से सांसें तड़फती रही
हंसी मुखड़ा बैठा है जो सामने
नजरें देखने को बहकती रही
किसी की आयी याद ऐसी दिल को
आँखें रात भर ही फड़कती रही
बिछड़ने को है उससे ही मगर
वो सूरत दिल में ही उतरती रही
ग़मों के साये में गुजरे दिन मेरे
ख़ुशी जिंदगी से बिछड़ती रही
वो दिल तोड़कर मुस्कुराता रहा
दिल पे क्या क्या आज़म गुजरती रही
आज़म नैय्यर