कहाँ हो तुम
कहाँ हो तुम
कहां हो तुम !
जाने कब मिलोगी
क्या अभी और वक्त लगेगा...?
ऐसे कई अनगिनत सवाल है
मेरे मन में तुम्हारे प्रति
हां मैं मिलना चाहता हूं
यह जो सरसों के खेत देख रही हो ना
इन स्वर्ण फूलों के बीच
तुम्हें हंसते खेलते व गुनगुनाते देखना चाहता हूं
झरने, पर्वत ,पहाड़ और नदियां
जो प्रकृति की अनुपम छटाएं हैं
इसका आनंद तुम्हारे साथ
महसूस करना चाहता हूं
हां मैं मिलना चाहता हूं
कब तलक प्रतीक्षारत रहूं मैं
कुछ ख़ास नहीं घूमा हूं कहीं
तुझ संग पूरी दुनिया की सैर करना चाहता हूं
हां मैं मिलना चाहता हूं