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Aditya Neerav

Abstract

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Aditya Neerav

Abstract

वे मेरे ही दर्द है

वे मेरे ही दर्द है

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दर्द मिटता नहीं

की दूसरा उभर आता है

राहत का मरहम लगने से पहले

एक नया दर्द मिल जाता है


काटों की तरह चुभते हैं,

लोगो के सवाल

मन एक और पीड़ा महसूस

करके कराह उठता है


मेरी वेदना रगों में बहते

खून की तरह दौड़ रही है

कागज़ पर गिर कर जो

शब्द बन गये

वे मेरे ही दर्द है


बहुत-सी वेदनाएं हैं,

जो अब धुंधली पड़ रही हैं

समय पर कागज़ मिलता नहीं,

ढूंढो तो कलम नहीं

ये शब्द जब स्मृति मात्र

रह जायेंगे, तब कहूँगा मैं

सभी दर्द यूं ही नहीं सहे मैंने..


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