बेटियां
बेटियां
छोटी सी उम्र में काम करने लग जाती हैं
बोझ ज़िन्दगी का ढोना सीख जाती हैं
चूल्हा-चौका, बर्तन-बासन
सब खेलने के उम्र में ही
सीख जाती हैं बेटियां
पढ़ने के उम्र में ही
'दादी अम्मा' बन जाती हैं
कांटों भरे इस डगर में
खुद को संभालना भी सीख जाती हैं
रिश्ते के हर मर्म को
बख़ूबी समझने लग जाती हैं
सब जीते हैं अपना 'बचपन'
आखिर क्यों बलिदान देती हैं
केवल और केवल बेटियां।
