कहाँ गया !
कहाँ गया !
शाख से पत्ता टूटा यारों
देखो जाने कहाँ गया
उसकी किस्मत ही कुछ ऐसी
इधर गया और उधर गया
सर्द हवा और तेज़ धूप से
उसको बेहद नफ़रत थी
शाख से जुड़ना और बिछड़ना
फिर भी उसकी फितरत थी
यम बन बैठा एक वायरस
आकर सब कुछ मिटा गया
उसकी किस्मत ही कुछ ऎसी
इधर गया और उधर गया
बिछड़ बिछड़ कर
वृक्ष रो रहा
अपनी अर्थी
स्वयं ढो रहा
सुर्ख चिता ने एक पलक में
उसका सब कुछ मिटा दिया
उसकी किस्मत ही कुछ ऐसी
इधर गया और उधर गया।