कहाँ गए ?
कहाँ गए ?
हृदय की बंजरता को खिलाकर,
भूमि पर इसकी वंसत उगाकर,
कहाँ गए तुम,कहाँ गए ?
पाषाण हृदय मेरा पिघलाकर,
प्रेम का उसमें सागर उमड़ाकर,
कहाँ गए तुम, कहाँ गए ?
मुझको सुंदर स्वपन दिखाकर,
मेरे अरमानों को पंख लगाकर,
कहाँ गए तुम, कहाँ गए ?
मुझमें प्रेम की लौ जगाकर,
सुने पथ पर दीया जलाकर,
कहाँ गए तुम, कहाँ गए ?
सूर्य-रश्मियों को सुलगाकर
जीवन-संध्या को महकाकर,
कहाँ गए तुम, कहाँ गए ?
रंगो से मेरा जीवन सजाकर,
हर दिन को मेरे त्यौहार बनाकर,
कहाँ गए तुम, कहाँ गए ?
खुशियों के अश्रुओं से नहलाकर,
मेरे लबों पर प्रेम के गीत सजाकर,
कहाँ गए तुम, कहाँ गए ?
गए लौटने का तुम वादा कर
क्यों न आए फिर तुम जाकर ?
कहाँ गए तुम, कहाँ गए।