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Kumar Vikash

Drama

3  

Kumar Vikash

Drama

खामोशी

खामोशी

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खामोशी दिलों के हाल बयाँ करती है

जो कह न सके ज़ुबाँ वो कहा करती है।


रोशनी में चिरागों की जरूरत है क्या 

जब अँधेरों में बातियाँ जला करती हैं। 


जज्बातों का बवंडर उठ रहा है अंदर 

अब ऐ तेरी खामोशियाँ कहा करती हैं। 


नींदों की जरूरत आँखों को थी कहाँ 

तेरे ख्वाबों की खातिर सोया करती हैं। 


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