खाली हाथ आया
खाली हाथ आया
न सितम कम हुए, न तू बाज़ आया
एक बादशाह तेरे कूचे से बर्बाद आया।
दिल में उठता रहा जज़्बात-ए-ग़ुबार
बाहरी रौनकों पर ना एक भी दाग आया।
जैसे-तैसे बच गई आबरू मेरी
बाद रोने के वो मेरा सैयाद आया।
सुनता रहा उसको बड़ी देर तसल्ली से
किस्सा अपना न कोई मुझे याद आया।
वो सामने बैठा तो कोई एहसास न था
उसके जाते ही हसरतों का सैलाब आया।
कहने को तो मेरे शहर में मेहमाँ था वो
वो जो आया, चराग़-ए-मुराद आया।
जिसकी नज़रों में रहने को की शायरी
मुद्दतों के बाद उसका इरशाद आया।
झोली भर कर गया मैं उसके दर "अहमक"
लौटा तो फिर से खाली हाथ आया।