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Blank Paper

Abstract Drama Tragedy

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Abstract Drama Tragedy

कभी गौर करो तो पता चले।

कभी गौर करो तो पता चले।

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जब कोशिश करके भी कुछ नहीं मिलता तो थक कर सो जाता हूँ,

मैं जब भी भीड़ में जाता हूँ, अकेला हो जाता हूँ।

आज भी लोग मुझे हारा हुआ ही मानते हैं,

पर मेरे सारे कोशिशें वो कहाँ जानते हैं।

क्यों मेरी जिंदगी इतनी तंग रहती है,

ये सोच कर खुद से ही एक जंग रहती है।

आजकल खुली आँखों से ही ख़्वाब सजाता रहता हूँ,

इस कदर तन्हा हूँ कि अपनी बातें खुद को ही बताता रहता हूँ।

सफर इतना किया कि अब पाँव दुख रहे हैं,

अब मरहम के इंतज़ार में ही घाव सुख रहे हैं।

लोग कहते हैं कि शायद किसी बात पर मचल गए हो,

तुममें अब पहले वाली बात नहीं रही, तुम बदल गए हो।

उन्हें क्या पता कि कितना गम समेट कर मुस्कुराना पड़ता है,

जब कोई पूछे कैसे हो, तो सब अच्छा बताना पड़ता है।

इस हँसते मुस्कुराते चेहरे के पीछे, कितना दर्द छिपा है।

इस धड़कते गुनगुनाते दिल में, कितना तड़प दबा है।

कभी गौर करो तो पता चले।


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