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Abstract Classics Inspirational

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Abstract Classics Inspirational

पड़ाव!

पड़ाव!

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कि कुछ यूं वक्त हाथ से फिसल गया,

आवारा सा लड़का था अब संभल गया।

एक सुबह मेरी नींद टूटी जब,

सुकून छोड़कर सुकून कमाने निकल गया।


मिल जाता था हर गली में तुमको,

वो तो कल था, अब वो कल गया।

हाल दिन में पूछोगे तो सब अच्छा ही बताऊंगा,

रोना तो रात में आता है,

रात तो ढल गया।


मत पूछा करो क्या करूंगा आगे,

खोटा सिक्का हूं साहब! चल गया तो चल गया।

क्या मतलब कितना कमा लेते,

क्या सुनना चाहते हो चंद पैसों में मचल गया।


तुम्हें अपना बनाने की ख्वाहिश थी मेरी,

वह एक ख्वाब था जो जल गया।

अंगारों का रास्ता था पत्थर बनना पड़ा,

मोंम बनता तो लोग कहते की पिघल गया।


इकलौता लड़का हूं जिम्मेदारियां बहुत है,

ये न सोचना कि मैं बदल गया।

मां का फोन था,पूछ रही थी घर कब आओगे,

मैंने बोला जल्द ही, फोन रखा और काम को चल दिया।


साहित्याला गुण द्या
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