कभी टूटे हम
कभी टूटे हम
कभी यहां पे दीवार टूटी, कभी टूटे हम
समझ में न आया किसी को हमारा गम
कैसा हुआ हमारे साथ साखी ये सितम
चारों तरफ़ दुनिया का सौर-शराबा है,
भीतर ही भीतर अकेले रोते रहे है, हम
कभी यहां पे दीवार टूटी, कभी टूटे हम
कितना दर्द छिपा हुआ दरिया के अंदर,
लहरों को छूकर देखे कितनी है ये गरम
फ़ौलाद भी पिघल जायेगा, मेरी तपन से,
इतने गर्म आंसुओ के दीये जलाये है, हम
अपनी किस्मत में क्या गम ही लिखा है ?
हर दिन जो पत्थर से टकराते रहते है, हम
कभी यहां पे दीवार टूटी, कभी टूटे हम
मिलेंगे हमे जितने शूल, बनेंगे उतने फूल
हमने भी तो भीतर दबा रखा बड़ा दम
हम भी तो शोले में हँसनेवाले हैं, शबनम।