कभी तो..
कभी तो..
कभी तो मिल जाओ तुम
ऐसे जैसे
जलती दुपहरी को सांझ
सांझ को मदहोश रात
रात को सुनहरा सवेरा
और सवेरा को पंछियों का शोर।
कभी तो
मिल जाओ तुम
ऐसे जैसे
द्वार को दो आँखें
दो आँखों को और दो आँखें
चार आँखों को प्रणय का एक पल
और उस एक पल को अमरता।
कभी तो मिल जाओ तुम
ऐसे जैसे
षोडशी को यौवन
यौवन को दर्पण
दर्पण को श्रृंगार
और श्रृंगार को आराधना।
कभी तो मिल जाओ तुम
ऐसे जैसे
प्यास को सुराही
सुराही को रेत
रेत में रखी सुराही को जल
और सुराही के मीठे जल को प्यासा
कभी तो...