कागज़ और कलम
कागज़ और कलम
कागज़ और कलम मेरी भावनाओं को समझते हैं
रोज़ कुछ लिखने की ज़िद मुझसे वो करते हैं,
मैं मेरे दिल का हाल रोज़ उन्हें सुनाती हूँ
उनको मेरा जिगरी दोस्त जो मानती हूँ,
मेरी तन्हाई में मेरा साथ वो देते हैं
मेरे अल्फाजों को बखूबी समझते हैं।
कुछ प्यार मैं उन्हें देती हूँ
बहुत प्यार वो मुझसे करते हैं,
मेरे अंदर के लेखक को जगाते हैं
मुझे हर पल में जीने का जज्बा दिलाते हैं,
मैं उनसे दूर नहीं जा पाती हूँ
मेरी छोटी-सी दुनिया में उन्हें शामिल करती हूँ,
हमेशा उनको अपने सामने मैं पाती हूँ
मेरी टेबल पर उन्हें सजाए रखती हूँ।
