रंग दे मोहे सखी
रंग दे मोहे सखी
कुछ ऐसे रंगों से रंग दे मोहे सखि
कि ये रंग ना बदन से छूटे
ऐसी लगन लागी उस मनमोहन से
कि वो प्रीत उससे तोड़े न टूटे
मन मोरा झुमे नाचे गाए आज मगन से
कि बरस के बाद आज होली है आई
हया की गुलाल गालों पर लालि भर गई
जब मोरे कन्हैया ने मुझे रंग लगाई
मृदंग के ताल पर थिरकती पांव मोरा सखियों
सांसे महक रही प्रेम की सुगंध से
हरा नीला पीला गुलाबी सब रंग चढ़ गया
भंग का नशा चढ़ा जब नैन मिली मुरलीधर से
खुशनुमा आज फ़िज़ा बसंत लाई है प्यार का बौछार
गली गली में शोर मची आई रंगों का त्योहार।।
