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Saroj Verma

Abstract

4  

Saroj Verma

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कभी कभी सोचती हूँ...

कभी कभी सोचती हूँ...

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कभी कभी सोचती हूं कि

कहीं तो होगा ऐसा कोई

जहां, जहां मिल सके दो

पल का सुकून...

जहां बहते हो सिर्फ ताजी

हवा के झोंके, फूलों की खुशबू

हरी भरी वादियां, सुन्दर झरनें

पंक्षियो का चहचहाना,

तितलियों का मंडराना,

पहाड़ों का मौन होकर

खड़े रहना, पेड़ों की वो

सरसराहट, जहां आकाश

का नीलापन साफ साफ

दिखाई देता हो, जहां होगी

चारों ओर सिर्फ शांति ही शांति

कभी कभी मन तो करता है कि

सिर्फ अपने साथ सिर्फ़ अपने

साथ कुछ पल बिताऊं, कुछ सोचूं

कुछ याद करूं फिर कुछ,

कुछ बिसराऊ, कुछ पल मौन रहूं

और कभी खूब जोर से चिल्लाऊं

कभी गूंजे,मेरी भी खिलखिलाहट

उन हसीन वादियों में ...

जहां बहा लूं अकेले में दो चार

आंसू ,जहां मैं हूं सिर्फ

मैं हूं और हो मेरी तनहाई....!!


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