STORYMIRROR

Saroj Verma

Abstract

4  

Saroj Verma

Abstract

जिन्द़गी....

जिन्द़गी....

1 min
271

कभी जर्जर वीरान है

कभी खुशियों का जहान है

कभी तल पर तो कभी जल ऊपर

कभी तो सूखे की मार तो

कभी ठंडी बूंदों की बौछार

कभी किसी के ना होने का आभास

कभी प्यार का मीठा सा एहसास

कभी तो टूटता है धीरज तो

कभी लगता है सच में उग्र है

कभी क्षण-भंगुर मात्र सी लगती तो

कभी कल्पना की धूम मचती

कभी लगती सच्चाई से बिल्कुल परे

कभी शून्य नीरस सी लगती तो

कभी खुशियों का अपार भण्डार

कभी अपनों की होती भरमार तो

कभी नित अकेला सा कर देती

कभी दिखी नन्हे बालक सी तो

कभी दिखी बुढ़ापे सी...!.


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract