जिन्द़गी....
जिन्द़गी....
कभी जर्जर वीरान है
कभी खुशियों का जहान है
कभी तल पर तो कभी जल ऊपर
कभी तो सूखे की मार तो
कभी ठंडी बूंदों की बौछार
कभी किसी के ना होने का आभास
कभी प्यार का मीठा सा एहसास
कभी तो टूटता है धीरज तो
कभी लगता है सच में उग्र है
कभी क्षण-भंगुर मात्र सी लगती तो
कभी कल्पना की धूम मचती
कभी लगती सच्चाई से बिल्कुल परे
कभी शून्य नीरस सी लगती तो
कभी खुशियों का अपार भण्डार
कभी अपनों की होती भरमार तो
कभी नित अकेला सा कर देती
कभी दिखी नन्हे बालक सी तो
कभी दिखी बुढ़ापे सी...!.