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Saroj Verma

Abstract

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Saroj Verma

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प्रेमरंग

प्रेमरंग

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सुध बुध खो बैठी सखी री ! मोहें चढ़़यों प्रेमरंग,

जीवन में बाजी शहनाई और बाजे ढ़ोल मृदंग,

सुनकर प्रेम की मुरलिया, मैं हो गई री बावरिया,

अब इन नैनन को आस, कब मिलेगें साँवरिया,


नैनों से अधरों तक प्रेम झलकता है, ये प्रेमरंग जब चढ़ता है,

बिना मदिरा का एक नशा है, ये तो बस सिर चढ़ता है,

प्रेमरंग में रंग के मीरा पी गई विष का प्याला, 

सुन्दर रंग है प्रेमरंग,जो इसमें रंगे तो हो जाए रंगीला,


सात रंग हैं इन्द्रधनुष में, लेकिन प्रेमरंग सबसे आला,

प्रेमरंग संग खेल के होली, हर प्रेमी हो जाए मतवाला,

रोम-रोम केसर घुली, चंदन महके अंग-अंग,

मोहें प्रेमरंग जबसे रंगा, मैं जा बैठी पी के संग,


मन-मन टेसू हुआ, तन ये हुआ गुलाल,

अंखियाँ अंँखियों से कर गईं कई सवाल,

अंखियों से जादू करे, नजरों मारे तीर,

मोहे प्रेम के रंग में रंग गयों, जब मैं बैठी जमुना तीर....


प्रेमरंग वो रंग है, जिसमें रंगे जो एकबार,

जीवन की खुशियाँ लूटे और छुड़ाए घरबार,

दुनिया के सब रंग झूठे, सच्चा है प्रेमरंग,

जो इसमें ना रंगा, उसकी हुई दुनिया बेरंग।


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