मौन
मौन
मौन की चीखें सुनी है कभी ?
घनघोर सन्नाटे में गुंजती हैं
कानों में एक नया सा
माहौल खड़ा करके,
आँखों को बेताब कर जाती है
और वक्त को रास्ते में ही
ज़ोर से खड्डे में गिराकर
किसी अकेलेपन के
कोने में ज़रा रो देती है
मौन की चीखें
शोर भरे सन्नाटे में सुनाई देती है
बेनाम सी किलकारीयों में
शिकायतें बयां कर जाती हैं
उसी वक्त जब सिमायें लांग जाती हैं
वो दर्द की हसरतें,
तब जाकर मौन की चीख सुनाई देती है।