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पेड़ बबूल

पेड़ बबूल

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उपेक्षाओं के दंश सहते

पर जीवन जीते भरपूर

वजूद अपना बना रखते

पेड़ बेशरम और बबूल।


नदी किनारे हो या खेत-खार

गली-कूचे हो या झाड़-झंखाड़

लेकर आशाओं का पूर्ण संसार

खिल उठते उमंगित भरपूर

हर मौसम में अपराजित ये

चाहे हो अनुकूल या प्रतिकूल।


स्वर्ण कंचों सी सुमनों में विहंसती

रूपांतरित होती लौंग सी कलियाँ

वंदनवार-सा झूमकर छाती

मटर सी बीजों की फलियाँ

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रजत तीक्ष्ण शूलों के मध्य

आकर्षित करते झूल-झूल।


गहरा बैगनी रंग लिए कुछ

कुछ अर्ध हल्का आसमानी

खूबसूरत घने पत्तियों में

खिलखिलाती सौंदर्य की रानी

सहज आकर्षित करते मन को

झूमते लहराते धरा पर झूल।


पतझड़ में पत्तियाँ सूख जातीं

तब ईंधन के काम ये आतीं

काट-काट अंग-प्रत्यंग को

छप्पर और इमारती बन जातीं

हँस-हँसकर अवदान करत

बिन प्रतिफल जीवन समूल।।


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