कभी बताऊं तुम्हें
कभी बताऊं तुम्हें
वो मेरी पहली प्यार तो नहीं है,
इसका यह मतलब नहीं कि वो मुझे प्यारी नहीं है।
हांँ, सच है कि मैंने कभी उसे बताया नहीं,
और वो सिर्फ मेरी है यह कभी जताया नहीं।
मुझे आज भी याद है हमारी वो पहली मुलाकात,
जब मैंने सिर्फ तुम्हारी एक झलक देखा था
और सुना था तुम्हारी वो धीमी आवाज में बात।
तुम्हारी आंँखों में कुछ अलग ही बातें थी,
जैसे तुम नहीं वल्कि तुम्हारी आंँखें बात करती थी।
तुम्हारी वो हल्की सी मुस्कान मेरे दिल को सुकून दिलाता था,
पर यह सब तुमको कहांँ मालूम था ?
कई ऐसे मेरे जिंदगी में आए तो थे,
पर तुम्हारे जैसा कोई कहांँ ?
तुम तो कभी मेरे नजरों के करीब थी नहीं,
पर देखा जाए तो मेरे दिल से कभी दूर हुई भी नहीं।
बहुत बारी सोचा है कि बताऊंँ तुम्हें तुम मेरे लिए क्या हो,
तुम ही तो मेरे बे वजह मुस्कुराने की वजह हो,
मेरे सारे दर्द भुलाने वाले वो दवा हो,
गर्मी की दिनों में जो ठंडक दिलाए तुम मेरे लिए वो एहसास हो।
काश कोई बताए तुम्हें तुम्हारी अहमियत मेरे जिंदगी में,
चाहे तुम मुझे मिलो या ना मिलो मांँगूंँगा तुम्हारी खैरियत हर दुआओं में।

