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Dinesh paliwal

Tragedy

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Dinesh paliwal

Tragedy

कैसे

कैसे

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कहने वाली बात जो होती

तो तुमको बतलाता मैं,

ये तो खामोशी का अफसाना,

इसको तुम्हें सुनाऊं कैसे।।


धूप खिला कर बारिश में,

हैं इन्द्रधनुष के रंग चुराए ,

मेरा सूरज आज है डूबा,

बेरंग चित्र दिखलाऊँ कैसे।


सावन में बरखा रानी ने,

मेघों संग छेड़ा एक तराना,

मेरु वीणा के तार हैं टूटे,

तुझको साज सुनाऊं कैसे।।


हारी बाज़ी भी जो जीतें,

जग में कैसे कैसे बाज़ीगर,

अपना तो हर दांव ही उल्टा,

जीवन बिसात बिछऊँ कैसे।।


रूप सजा के आयी चांदनी,

चांद भी है पूरा पूनम का,

अपनी तो हैं रात ग्रहण की,

सूतक में बाहर आऊं कैसे ।।


कहते हैं मरने वाले कि तो,

हर ख्वाइश को माना जाता है

अपनी मैय्यत पर तुझको अब,

खुद ही से बता बुलाऊँ कैसे।।


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