कैसे मुस्कुराऊँ?
कैसे मुस्कुराऊँ?
ज़िन्दगी की ज़द्दोहद और जीने का संघर्ष कैसे मुस्कुराऊँ!
आज के काम ख़त्म हुए नहीं कि कल भी वहीं दोहराऊँ!
खुशियों संग ग़म के लम्हें भी फिर कैसे ख़ुशी मनाऊं?
बेटे की विदेश में नौकरी लगी,भावनाओं का इज़हार कैसे करूँ?
दूर हो जायेगा हमारी नज़रों से ये बात मैं कैसे भुलाऊं!
भोजन में अलग फरमाइशे अपने मन का कैसे बनाऊं!
सबकी भिन्न आटे की रोटियां मेरे गेहूँ की रोटी कब बनाऊं!
सबकी विदेशी व्यंजन की माँग सिर्फ मैं ही देशी खाऊं?
क्या सभी की आपूर्ति कर मनमार के ऐसी ही जिऊँ?
कहने को गृहणी का घर फिर भी मन की ना कर पाऊँ!
घर की स्वामीन होकर भी निर्णयों में ख़ुद को असहाय पाउँ!
फिर लगता ज़िन्दगी ऐसे ही चलेगी मन का कर लूँ,
एकाध बार बिना किसी से पूछे दिल की कर लूँ,
आज सबके लिये रोटी सब्ज़ी ही बनाकर रख दूँ,
रिश्तों को निभाऊँ पर आत्मसम्मान का ख्याल रखुँ,
कहीं नहीं जाने का मन है तो साफ़ मना कर दूँ,
अब वजह नहीं ढूंढूंगी की ऐसी स्तिथि में कैसे मुस्कुराऊँ।।
