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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

कैसे-कैसे लोग

कैसे-कैसे लोग

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इस दुनिया मे कैसे-कैसे लोग है

इस दुनिया मे कैसे-कैसे रोग है


हर आदमी का रास्ता रहे रोक है

इस दुनिया मे कैसे-कैसे जोंक है

कुछ का तो ईलाज़ हो जाता है,

कुछ का ईलाज नहीं हो पाता है,


इस दुनिया मे कैसे-कैसे कोढ़ है

आज पत्थर भी पिघल जाते है,

पर कुछ इंसां मग़रूर पाये जाते हैं,

इस दुनिया में कैसे-कैसे छोंक है


इस दुनिया में कैसे-कैसे लोग है

कुछ लोग नाच न जाने आंगन टेढ़ा,

फिऱ भी ख़ुद को समझते हैं पेड़ा,

इस दुनिया मे कैसे-कैसे चोक है


आज लोग नहीं कर रहे हैं सेवा,

मजबूरों का खा रहे हैं वो में वाइस

दुनिया मे कैसे-कैसे भोग है

सादगी को मूर्खता समझते हैं,


दिखावे को विद्वता समझते हैं,

इस दुनिया में कैसे-कैसे शौक है

इस दुनिया में कैसे-कैसे लोग है

इन कैसे-कैसे लोगों से साखी,


नहीं माँगना कभी भी तू पाती,

इनको बता देना तू इनकी जाति,

तुझे बनना है गुलाब की नोक है

कैसे-कैसे लोगो को देना रोक है


इस दुनिया में कैसे-कैसे मोड़ है,

हमारी रूह को भी रहे वो तोड़ है,

माना इन मोड़ों पर बड़ा ख़तरा है,

दरिया में छिपा लहरों का कतरा है,


इन कैसे-कैसे लोगों के

मोड़ से निकलनेवाला

आदमी ही, साहिल को

पाता अपनी ओर है।


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