कातिल मेहबूबा
कातिल मेहबूबा
छल्लों को घुमाना गोल मोल सफ़ेद धुएं के,
राख हटाना झटका कर प्यार से,
हीरो नज़र आना बैठ रैलिंग पर,
दोस्तों का भी साथ है।
दौर था यारियों का,
सिगरेट एक , दोस्त चार थे।
लड़ाई थी , कौन सुलगाएगा?
कश पहला कौन लगाएगा?
ना हम बेजार थे।
कांपते जिस्म को हिलाती खांसी,
खून बलगम में आता है,
सिगरेट का धुंआ ,
नया रूप ले , गले से बाहर आता है।
सफ़ेद धुआं , लाल कैसे बन जाता है?
मैं पीता था , या तू पीती थी मुझे
होंठो से चिपक जाती, महबूबा सी,
जान देकर आज ,
कीमत मोहब्बत की अदा की।
तू सुलग रही , जल चुका हूं मैं।
बेवफ़ाई अदा तेरी,
जान दे दी प्यार में तेरे,
यही वफ़ा मेरी।
