काश में पानी होता
काश में पानी होता
जुलाई का महीना था,
बारिश का जोर था,
आसमान पे बादल छाए थे,
और मैं कॉलेज के लिए निकला था।
छाता हाथ में था,
बहुत रोमांचित माहौल था,
सभी लड़के, लड़कियां
कॉलेज के लिए बढ़ रहे थे।
अचानक बादल को गुस्सा आया,
और वो जोर से गड़गड़ाया,
छमाछम पानी बरसने को आया।
तभी देखा,
एक लड़की बेचारी भीगी जा रही,
बारिश उसको छेड़े जा रही,
मेरी मर्दानगी न रुक पाई,
तुरंत छतरी आगे बढ़ाई।
वो शरमाई,
फिर मुस्कराई,
धीरे से दोनों एक छतरी में
चल दिए भाई।
किंतु बारिश कहां मानने वाली थी,
वो तो आज हमें मिलाने वाली थी,
लड़की पर दाएं बाएं से बोछारें पड़ रही थीं,
उसके बदन में रिस रही थीं।
मैं कन्नखियों से जब भी देखता,
मन मेरा जल उठता,
काश मैं भी बारिश का पानी होता।