काश कि तुम समझते
काश कि तुम समझते
काश कि तुम हमें
केवल एक जिस्म से
इतर भी देख पाते
तो देख पाते कि, जिन
काजल भरे नैनों के
तुम कसीदे पढ़ते हो
उसमें काजल के अलावा
कई सपनें भी बसते हैं
जिन लहराती जुल्फों
नें तुम्हारे होश फाख्ता किए है
वो दरअसल उलझी हुई है
और उसी तरह उलझी है
हमारी जिंदगी भी
ये नशीले से होठ
जिन्हें देखकर ही तुम मदहोश
हो जाते हो,
बोलना चाहते है बहुत कुछ
लेकिन कहनें की इज़ाजत नहीं है उन्हे
और ये शरीर जिसकी तारीफ में तुम
नज़म लिखते हो
उससे भी ज्यादा खूबसूरत है
हमारा दिल और उसमें बसे जज्बात
लेकिन तुमनेंं कभी कोशिश ही नहीं की
उस तक पहुंचने की
आखिर फितरत कहाँ बदलेगी तुम्हारी
तुमने सदा ही औरतो को अपने हाथों
की कठपुतली समझा है
भूल चुके हो तुम कि हममें भी
जान है।
