STORYMIRROR

Shakuntla Agarwal

Abstract Tragedy Others

4  

Shakuntla Agarwal

Abstract Tragedy Others

"सृष्टि का चक्र"

"सृष्टि का चक्र"

1 min
450

तेरी - मेरी औकात ही क्या,

सृष्टि ने चक्र चलाया रे,

झूठी माया, झूठी काया,

फिर तू क्यूँ भरमाया रे,


राम ने सीता को त्यागा,

सीता ने वनवास सहा,

इक धोबी की बात से,

इतना भारी स्वाँग रचा,

निर्दोष सीता माता पे,

इतना भारी कलंक लगा,

धरती फट गयी, सीता समा गयी,

इसका है इतिहास गवाह,

तेरी - मेरी औकात ही क्या,

सृष्टि ने चक्र चलाया रे,

झूठी माया, झूठी काया,

फिर तू क्यूँ भरमाया रे,


बुद्धि भ्रष्ट हुई युधिष्ठिर की,

द्रोपदी को दाँव लगाया रे,

चीरहरण करें दुशासन,

क्रूर काल मुस्काया रे,

जब चक्रधर को पुकारा,

आकर चीर बढ़ाया रे,

नारी की अस्मत क्या,

दुनिया को पाठ पढ़ाया रे,

तेरी - मेरी औकात ही क्या,

सृष्टि ने चक्र चलाया रे,

झूठी माया, झूठी काया,

फिर तू क्यूँ भरमाया रे,


अधर्म यहाँ पर फ़ैलेगा,

धर्म नज़र नहीं आयेगा,

जिसको तूने पाला - पोसा,

तुझको आँख दिखायेगा,

घर के दरवाज़े बंद करेगा,

गली - गली भटकायेगा,

अंत समय में तुझको "शकुन"

मुखाग्नि को तरसायेगा,

तेरी - मेरी औकात ही क्या,

सृष्टि ने चक्र चलाया रे,

झूठी माया, झूठी काया,

फिर तू क्यूँ भरमाया रे।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract