सत्यार्थ प्रेम की परछाई
सत्यार्थ प्रेम की परछाई
जीवन मे प्रेम की भाव भाषा परिभाषा कली कोमल हृदय
सागर गहराई की अप्सरा।।
जीवन मुस्कुराहट की आस्थाआभास न था अचानक कहीं
दूर चली जायेगी।।
जीवन वीरान मैं भ्रमर प्रेम की पिपासा का मकरन्द उसकी चाहत की
हृदय में उठती लपटों में झुलसता रह जाऊंगा।
भाग्य कहूँ या भगवान का वरदान,प्रेम पल प्रहर दिन साल का लाई
रात रानी बेला चमेली की तरह।।
अपनी सुगन्ध में तड़पता छोड़ जाने कहाँ चली गयी
सूरज में प्रकाश नही ,
चाँद में चांदनी नहीँ जीवन मात्र श्वास के
विश्वास की आशा याद।।
