काश ! जो तू होती
काश ! जो तू होती
सुबह की मद्धिम हवा चल रही है।तेरी याद दिल में मचल रही है।
की तू होती तो तन्हा न हम होते
तेरी आज न होना हमे खल रही है।।
कोई सपना न तुझसे प्यारा है
तुझे देखुं स्वप्निल नजारा है
की तुझे देखते पलक न ढलते
इसमें जो आज अश्क ढल रही है।।
तेरे लट का लटका लटकेदार
मन न भरे देखें जितने बार
की लट संग मन नित डोलते
इनमें जो आज बिरह अगन जल रही है।
दिल का आसार तुझसे न कम है
जो तू है तो बाग बाग मन है
की मन मधुकर बन सुमन संग खेलते
इनमें जो आज खिज़ा की पवन चल रही है।
तेरी उपमा किससे करूँ जगत में
जब भी सोचूं पडूँ गफलत में
की तेरी खूबी परत दर परत खुलते
इन खूबी से जो मन दर्पण झल झल रही है।
अब जो मिली तो तेरी श्रृंगार करूँगा
इन आँखों से जीभर दीदार करूँगा
की तुम हो तो क्यों ,हम हैं ये भूलते
अपने इस् मन में यहीं उलझन चल रही है।
काश ! जो तु होती। , काश ! जो तू होती।