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अच्युतं केशवं

Drama

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अच्युतं केशवं

Drama

कागज की नाव

कागज की नाव

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कागज नाव चले

बारिश के पानी में

बाल मन बन जाता

सिंदबाद जहाजी था।


चादर लपेट कंठ

शक्तिमान बनते कभी

गोल गोल घूम

गायब हो जाता पल में।


झाड़ू थी हवा यान

सफेद जादूगरनी जैसी

सोटे के घोड़े पर बैठ

बन जाता शहसवार था।


सब कुछ था संभव

असंभव था कुछ भी नहीं

मुठ्ठियों में बंद कर रखी थी

दुनिया।


बड़े हुए विश्वास की जगह ली

अविश्वास ने

छोटे छोटे काम कठिन

लगने थे लग गए।


काश पुनः बालपन

लौट आये

हो जाए दुनिया

सरल और सीधी

जानता हूँ

यद्यपि यह बात आज बीती

फिर भी है आशा।


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